सारंडा वन क्षेत्र में रोजगार की संभावनायें नक्सलियों की बंदूकें के आगे दम तोड़ रही है।उड़ीसा के सीमा को छूते सारंडा जंगल की कभी अपनी खासियत थी। जहां घने जंगलों के कारण सूर्य की रोशनी धरती को छु नही पाती थी। लेकिन आज सारंडा विराण होती जा रही है
राजेश सिंह ( चिरिया न्यूज़)
कहा जाता है कि देश मे अगर कोई दूसरा शिमला के नाम से प्रशिद्ध है तो वह है किरीबुरु ओर माइंस। मालूम हो की किरीबुरु के आस पास ऐसा हरा भरा जंगल है। जिसे देखते ही आँखों मे ठंडक पहुंचती है। उडीसा के सीमा को छूते सारंडा जंगल की कभी अपनी खासियत थी। एशिया महाद्वीप में यह प्रशिद्ध था की साल के इस घने जंगलों में दिन मे सूर्य की रोशनी धरती को नही छू पाती। बताया जाता है कि किरीबुरु से सटे थोलकोबाद का वन बिश्रमागार आजादी के पुर्व अंग्रेजों का आरामगाह हुआ करता था। किरीबुरु से सटे कोयल व कारो नदी में बहता लाल पानी बरबस लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। लेकिन अब उक्त नदियों से बहते लाल पानी में खून की बू आने लगी है। नक्सलियों ने जब से सारंडा वन मे अपना अस्तित्व तलाशना शुरु किया मानों इस इलाके का सुख चैन और शांति मे ग्रहण लग गया है। अब कोई पर्यटक किरीबुरु, गुवा, चिरिया, और मनोहरपुर की ओर रुख करना नही चाहता। मालूम हो की साल के घने जंगल के विकास का अध्यन करने के लिए ख्याति प्राप्त भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के शोधकर्ताओ को लुभाने के लिए मुख्य केंद्र के रूप मे योजनायें बनाई गई थी। मालूम हो की मनोहरपुर विधानसभा मे विधायिका सह मंत्री जोबा माझी ने पूर्व मे पर्यटन मंत्री के रूप में किरीबुरु के लिए पर्यटन सक्रिट बनाया। लेकिन भूमिगत बम बिस्फोट के लिए नक्सलियों द्वारा तैयार सक्रिट इतनी कारगर रही की पर्यटन विभाग की योजना सारंडा के बीहड़ो मे कहाँ गुम हो गई किसी को पता नही चला। गौरतलब हो की सारंडा इलाके में लौह अयस्क का प्रचुर भंडार है। जिसके चलते देश भर के व्यापारियों की नज़र इस पर रही है। मालूम हो की झारखंड अलग राज्य बनने के बाद यहाँ उपलब्ध लौह अयस्कों की लालच मे उद्योग पति आगे आये लेकिन अब यहाँ सिर्फ उन्हीं लोगों का साम्राज्य बचा है। जो नक्सलियों से येन केन प्रकारेन निपटने मे सक्षम है। इससे भी बढ़कर यह है कि अब वन विभाग के लिए सारंडा का कोई मायने नही है न तो अब जंगल के भीतर वन विभाग के अधिकारी ही जाते हैं और न ही कोई कर्मचारी। नतिजतन सारंडा के कीमती साल के बृक्ष कट रहे हैं। उडीसा के लकड़ी माफिया एशिया प्रशिद्ध सारंडा को चारगाह बनाने के लिए आतुर है। लेकिन वन विभाग कोई कारवाही नही कर पा रही है। मालूम हो की सारंडा मे छिपी वन औषधी व वन पदार्थ का कारोबर तो कभी का ठप्प हो चुकी है। वन के भीतर हजारों लोगों के रोजगार की हर संभावना नक्सलियों की बंदूके के आगे दम तोड़ रही है।