मनोहरपुर-सरहु(खड्डीं)पूजा महोत्सव धूमधाम से मनाया गया,जोबा मांझी ने सरहुल त्योहार की बधाई व शुभकामना दिया.
मनोहरपुर: कुड़ुख सरना समिति मनोहरपुर,आनंदपुर के तत्वावधान में गुरुवार को सरहुल त्योहार को लेकर पारंपरिक तरीक़े से शोभा यात्रा धूमधाम से निकाली गई.बतौर मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री सह स्थानीय विधायक जोबा मांझी,विशिष्ठ अतिथि के रूप में ज़िला परिषद उपाध्यक्ष रंजित यादव एवं पूर्व एसडीपीओ दाऊद कीड़ो समेत समाज के प्रबुद्ध व गणमान्य लोग उपस्थित थे.शोभा यात्रा के पूर्व तिरला स्थित सरहुल पूजा स्थान में ग्राम पाहन के द्वारा विधिवत्त पूजा अर्चना कर समाज की सुख शांति व समृद्धि को कामना की गई.वहीं पारंपरिक भेषभूषा में हजारों की संख्या में समाज के लोगों ने सरहुल शोभा यात्रा में हिस्सा लिया.और तिरला सरना स्थल से आर टी सी चौक,उंधन शहीद निर्मल चौक,अगस्तीन चौक,रेलवे क्रासिंग,रामधानी चौक हुते हुऐ नंदपुर डोंगाकाटा सरना स्थाल पर सरहुल शोभा यात्रा एक जनसभा के रूप में तब्दील हुआ.वहां जनसभा में उपस्थित मुख्य अतिथि जोबा मांझी समेत कुड़ुख सरना समाज के गणमान्य लोगों ने सामाजिक एकता और सद्भावना का संदेश दिया.तथा सरहुल त्योहार की बधाई एवं शुभकामना दिया.जोबा मांझी ने कहा कि आदिवासी समुदाय शुरू से ही प्रकृतिक के उपाशक रहें है.हमें अपने आने वाले पीढ़ी को भी इस बारे में भली भांति अवगत कराना होगा.ताकि हमारी आदिवासी संस्कृति की रक्षा व सभ्यता को आगे ले जाने हेतु उन्होंने समाज के लोगों से बढ़-चढ़कर योगदान देने की अपील किया.जुलूस के दौरान विभिन्न मर्गों व चौराहों में कुड़ुख सरना समाज एवं स्थानीय सामाजिक संगठनों के द्वारा जगह- जगह पर स्टॉल लगाकर शीतलजल,शर्बत जलपान ,चना गुड़ आदि की व्यवस्था की गई थी.सरहुल पूजा महोत्सव सह शोभा यात्रा कुडुख सरना जागरण मंच द्वारा संचालन कर रहे थे.*सरहुल एक प्रकृतिपर्व पर विशेष* नए वर्ष की शुरुआत का प्रतीक सरहुल पर्व आज धूमधाम से मनाया गया.सरहुल एक प्रकृति पर्व है जो की वसंत ऋतु में मनाया जाता है.वसंत ऋतु में जब पेड़ पौधे पतझड़ में अपनी पुरानी पत्तियों को गिरा कर नई-नई पत्तियों और फूलों का श्रृंगार करते हैं, तब सरहुल त्योहार मनाया जाता है.जानकार बताते हैं कि सरहुल मुख्यतः चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में शुरु होकर चैत्र पूर्णिमा को समाप्त होता है.प्रकृति पर्व सरहुल वसंत ऋतु में मनाए जाने वाला आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है.वसंत ऋतु में जब पेड़ पतझड़ में अपनी पुरानी पत्तियों को गिरा कर टहनियों पर नई-नई पत्तियां लाने लगते हैं, तब सरहुल का पर्व मनाया जाता है.यह पर्व मुख्यतः चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया से शुरू होता है और चैत्र पूर्णिमा को समाप्त होता है.सरहुल में साल और सखुआ वृक्ष की विशेष तौर पर पूजा जाने वाला एक लोकप्रिय त्योहार है.इस पर्व को झारखंड की विभिन्न जनजातियां अलग-अलग नाम से मनाती हैं.उरांव जनजाति इसे खड्डी पर्व, संथाल लोग बाहा पर्व, मुंडा समुदाय के लोग बा पर्व और खड़िया जनजाति जंकौर पर्व के नाम से इसे मनाते हैं.यह पर्व आदिवासी नववर्ष है और झारखंड के मुंडा, उरांव, हो आदि जनजातियों द्वारा मनाया जाता है.झारखंड क्षेत्र में मनाए जाने वाले सबसे लोकप्रिय आदिवासी त्योहारों में से एक, सरहुल त्योहार नए साल की शुरुआत का प्रतीक है.इसमें सभी लोग भाईचारा व आपास में मिल जुल कर यह उत्सव मनते है.कुडुख सरना जागरण मंच मनोहरपुर आनन्दपुर प्रखंड के मंच संचालन बधना उराँव भीमसेन तिग्ग,बहनु तिर्की,पूजा कुजूर,सुशीला सँवैया,ज्योति मैरल,इंद्रजीत समद,मानुएल बैक,प्रमोद केरकेट्टा, बोदे खलखो, रोबी लकडा बुधेस्वर धनवार, राम उराँव, करमा केरकेट्टा ,फागु केरकेट्टा, विमल किस्पोटा,रामनाथ किस्पोटा,सुधीर केरकेट्टा तिला तिर्की कुडुख सरना जागरण मंच के हज़ारो की संख्या में महिलायें,पुरुष एवं युवक,युवतीयां समेत समाज के गणमान्य व प्रबुद्ध लोग उपस्थित थे.