मनोहरपुर-उदीयमान सूर्य को अर्ध्य देकर,छठबर्ती बर्त का किया समापन.

मनोहरपुरः चार दिवसीय कठिन एवं निर्जला लोक आस्था का महापर्व छठ पर छठवर्ती सोमवार को कोयल एवं कोयना नदी तट अवस्थित छठ घाटों पर जाकर उदीयमान सूर्य का अर्ध्य देने के बाद पर्व का समापन किया.छठ महापर्व का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय खाए के साथ ही शुरू हो जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार छठ महापर्व संतान की प्राप्ति, कुशलता उनकी दीर्घायु और स्वास्थ लाभ की मंगलकामना के साथ किया जाता है. छठ व्रत का इस साल बेहद शुभ संयोग में आरंभ हो रहा है. छठ पूजा में वर्ती को चार दिन तक हर परंपरा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखना होता है. चार दिनों तक चलने वाला यह महापर्व हिंदू पंचांग के मुताबिक छठ पूजा कार्तिक माह की षष्ठी से शुरू हो जाती है.सूर्य की बहन है छठी मैयाः-हिंदू शास्त्रों के अनुसार छठ मईया भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं, उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया जाता है. ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख किया गया है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष जबकि बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया. इसमें सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है.नवरात्रि में भी होती है इनकी पूजाः-मान्यताओं के अनुसार शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं माता की पूजा की जाती है. इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि में षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है.कब से हुई छठ व्रत की शुरुआतः-ब्रह्मवैवर्त पुराण की कथा के अनुसार जब प्रथम मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान प्राप्त नहीं हुआ, तो वो बहुत दुखी रहने लगे थे. महर्षि कश्यप के कहने पर राजा प्रियव्रत ने एक महायज्ञ का अनुष्ठान संपन्न किया जिसके परिणाम स्वरुप उनकी पत्नी गर्भवती हुई, लेकिन दुर्भाग्य से बच्चा गर्भ में ही मर गया.जिससे पूरी प्रजा में मातम का माहौल छा गया.इसलिए किया जाता है छठ महापर्वः-उसी समय आसमान में एक चमकता हुआ पत्थर दिखाई दिया, जिस पर षष्ठी माता विराजमान थीं. जब राजा ने उन्हें देखा तो उनसे, उनका परिचय पूछा. तब माता षष्ठी ने कहा कि- मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री हूं और मेरा नाम षष्ठी देवी है. मैं दुनिया के सभी बच्चों की रक्षक हूं और सभी निःसंतान स्त्रियों को संतान सुख का आशीर्वाद देती हूं. इसके उपरांत राजा प्रियव्रत की प्रार्थना पर देवी षष्ठी ने उस मृत बच्चे को जीवित कर दिया और उसे दीर्घायु का वरदान दिया. देवी षष्ठी की ऐसी कृपा देखकर राजा प्रियव्रत बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की पूजा-आराधना की. मान्यता है कि राजा प्रियव्रत के द्वारा छठी माता की पूजा के बाद यह त्योहार मनाया जाने लगा.

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