पढ़े-लिखे आदिवासी युवक रोजगार के अभाव में हो रहे पलायन को मजबूर

मनोहरपुर (झारखंड), 28 जुलाई: झारखंड राज्य के गठन को अब पच्चीस वर्ष पूरे होने को हैं, लेकिन इस आदिवासी बहुल राज्य की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में कोई ठोस सुधार नहीं दिखाई देता। शिक्षित युवाओं के लिए आज भी स्थायी और सम्मानजनक रोजगार एक चुनौती बना हुआ है। यही कारण है कि राज्य के सुदूरवर्ती प्रखंडों से युवाओं का बड़े पैमाने पर पलायन लगातार जारी है।मनोहरपुर प्रखंड के कोलपोटका पंचायत अंतर्गत रेंगालबेड़ा गांव के निवासी आशीष कंडुलना इसका जीवंत उदाहरण हैं। मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त कर चुके आशीष को अपने ही राज्य में रोजगार नहीं मिला, जिससे निराश होकर वह अब ओडिशा के औद्योगिक नगर राउरकेला की ओर पलायन करने को मजबूर हैं। स्थानीय समाजसेवी संतोष कुमार गुप्ता उर्फ गुडलाल ने उन्हें सहयोग का आश्वासन जरूर दिया, लेकिन राज्य में रोजगार की सीमित संभावनाओं के चलते आशीष को कोई ठोस विकल्प नहीं मिला।यह स्थिति सिर्फ आशीष की नहीं, बल्कि हजारों आदिवासी युवाओं की है, जो शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद अपने गांव, जिले और राज्य में अपने लिए अवसर नहीं खोज पा रहे हैं।राज्य की राजनीतिक दलों द्वारा बार-बार युवाओं को नौकरी और बेरोजगारी भत्ते के वादे किए गए — कभी पांच लाख रोजगार देने की घोषणा, तो कभी "समृद्ध झारखंड" का सपना। लेकिन इन वादों का हश्र महज़ चुनावी जुमलों से ज़्यादा कुछ नहीं रहा।झारखंड जैसे खनिज संपदा से समृद्ध राज्य में आज भी मूलवासी और आदिवासी समुदाय मूलभूत जरूरतों से जूझ रहे हैं। जल, जंगल, ज़मीन के नाम पर अधिकार की लड़ाई लड़ने वाली झारखंडी पार्टियाँ अब सिर्फ सत्ता तक सीमित रह गई हैं।निष्कर्षतः, जब तक राज्य सरकार युवाओं के लिए टिकाऊ और व्यापक रोजगार नीति नहीं बनाती, तब तक झारखंड के पढ़े-लिखे आदिवासी युवक यूं ही दूसरे राज्यों की ओर पलायन करते रहेंगे — अपने सपनों और भविष्य के साथ।

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